hindisamay head


अ+ अ-

कविता

हवा की हथेली तक

मत्स्येंद्र शुक्ल


कोई पुकार रहा -
किधर से
कहाँ से
ध्‍वनि-गति मंद।
गर्द-गुबार से खेल चुकी हवा
अशांत वायु-परिधि में क्रंदन

घूँट भर पानी पी नदी की परात से
वृक्ष-पल्‍लव की हरीतिमा पर लुब्‍ध
तना-सा बोल रहा             पपीहा
धुल गया दिशाओं में व्‍याप्‍त         संशय अवसाद

तिर-तिर वंशी लय में
कहीं चल रहा मौसम का महारास
वह जो पुकार रहा पलक खोल
ध्‍वनि को हवा की हथेली तक पहुँचा रहा

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में मत्स्येंद्र शुक्ल की रचनाएँ