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कोई पुकार रहा -
किधर से
कहाँ से
ध्वनि-गति मंद।
गर्द-गुबार से खेल चुकी हवा
अशांत वायु-परिधि में क्रंदन
घूँट भर पानी पी नदी की परात से
वृक्ष-पल्लव की हरीतिमा पर लुब्ध
तना-सा बोल रहा पपीहा
धुल गया दिशाओं में व्याप्त संशय अवसाद
तिर-तिर वंशी लय में
कहीं चल रहा मौसम का महारास
वह जो पुकार रहा पलक खोल
ध्वनि को हवा की हथेली तक पहुँचा रहा
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